દેશની રાજનીતિમાં ઉથલ પાથલ જોવા મળી રહી છે. કોઈ નેતાની ધરપકડ થઈ ગઈ છે તો કોઈ નેતાએ પક્ષપલટો કરી લીધો છે. રાજનીતિ શબ્દમાંથી નીતિ નિકળી ગયો છે અને માત્ર રાજ બાકી રહી ગયો છે તેવું લાગે છે... ત્યારે સાહિત્યના સમીપમાં આજે પ્રસ્તુત છે શાંતિ સ્વરૂપ મિશ્રની કવિતા...
झांकता रहा मैं तो यूं ही औरों का गिरेवान...
आज ख़ुद से ही ख़ुद की, मुलाकात हो गयी
सुबह से झगड़ते झगड़ते यारो, रात हो गयी
अफ़सोस की न पहचान पाया ख़ुद को भी मैं
यारो ये तो एक अजब सी, करामात हो गयी
झांकता रहा मैं तो यूं ही औरों का गिरेवान,
आज ख़ुद का भी देखा तो, मालूमात हो गयी
मैं तो समझता रहा ख़ुद को दूध का धुला-सा,
पर ख़ुद से तो कालिखों की, बरसात हो गयी
समझता रहा कि मैं ही मैं हूं इस जहां में बस,
आज इस मैं को पता अपनी, औकात हो गयी
दुनिया के हमाम में सब के सब नंगे हैं 'मिश्र’,
अच्छा हुआ कि मुझको पता, मेरी ज़ात हो गयी
-- शांती स्वरूप मिश्र